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कहाँ हो भगीरथ?(गंगा की पुकार)

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भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन स्रोतों अर्थात जल की समस्त नदियों में मैं गंगा हूं। गंगा मात्र एक नदी नहीं है,  अपितु वह हमारी आस्था, श्रद्धा और विश्वास का एक दिव्य  ने प्रवाह है। हमारे ऋषियों(ब्राह्मणों) ने कोई गंगा को यूं ही पवित्र नदी घोषित नहीं किया होगा। यह तो वर्षों के अनुसंधान करने के पश्चात इसे देव नदी घोषित किया। हरकी पैड़ी, हरिद्वार भारत की प्राय: सभी भाषाओं के कवियों ने गंगा जी का की गुणगान किया है। मैथिल कोकिल विद्यापति जी ने श्री गंगा जी की स्तुति करते हुए कहा है कि- करब जप तप धेआन, जनम कृतारथ एक ही सनान। भन विद्यापति समदओं* तोहि, अंत काल जनु विसरहु मोही।। (*) समदओं-प्रार्थना करता हूँ। युगों युगों से गंगा पृथ्वी पर निर्मल बहती आ रही है किंतु विशेष रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से गंगा अत्यंत प्रदूषित हो गई है। इसका कारण क्या है?  इसका एकमात्र कारण है कि हमने अपने पूर्वजों के बताए हुए मार्ग का अनुसरण नहीं किया। हमारे प्राणों में गंगा जी का यशोगान तो है ही, वहीं दूसरी ओर इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए भी कुछ नियम बनाए। त्रिवेणी घाट,ऋषिकेश यथा- शौचम...

वासन्ती नव शस्येष्टि:- होलिकोत्सव

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रंगोत्सव का पर्व हिंदुओं का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। संस्कृत में इसका नाम "होलिका" या "होलाका"  कई जगह आया है।  होली एक पर्व, उत्सव और वैदिक कर्मों का एक समूह है, जिनमें कालक्रम से परिवर्तन होते होते भिन्न-भिन्न कर्मों के कुछ चिन्ह मात्र शेष रह गए हैं। पर्व का समय:- यह फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होता है। यह प्रथम चातुर्मास्य याग है, जिसका नाम "वैश्वदेव"है। रंगोत्सव के विभिन्न नाम:- इस पर्व को संस्कृत में होलिका या होलाका कहते हैं। हम इसे  होली, रंगोत्सव, वर्णोत्सव आदि कहते हैं। वेदों में इसका नाम वासन्ती नव शस्येष्टि कहते हैं क्योंकि  यह वसन्त ऋतु में आता है  और वर्ष के अंतिम मास में आता है। वैदिक यज्ञ का पर्व:-  वेद का मुख्य कर्म यज्ञ है। उस यज्ञ के तीन भेद हैं - इष्टि, सोम और चयन। इसमें इष्टि- अग्निहोत्र  दशपौर्णमास और चातुर्मास्य आदि भेद से अनेक प्रकार की है। चातुर्मास्य उन यज्ञों का नाम है, जो चार चार महीनों के अंतर से किए जाते हैं। वैसे तो ऋतु छः मानी गई है किंतु दो ऋतुओं में समय प्रायः एक सा रहता है इसलिए मुख्य ऋतु तीन ही हैं- गर्मी, वर्षा और शीत। ...

राम मंदिर

  रामो विग्रहवान धर्म:। राम धर्म के साक्षात विग्रह हैं। यह वचन महर्षि वाल्मीकि जी के हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भारतीय आदर्श और संस्कृति के साक्षात स्वरूप हैं। वह भारत की मर्यादा शील, सदाचार, चरित्र और नैतिकता हैं। वेद भगवान कहते हैं- मनुर्भव अर्थात मनुष्य बनो। मानव बनो। तब ऐसा कौन है, जो मानव की कसौटी पर खरा उतरता हो? और क्या है मानव होने की कसौटी? कुछ ऐसा ही प्रश्न महर्षि वाल्मिकी जी ने देवर्षि नारद जी से पूछा, जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में है। " इस संसार में गुणवान, पराक्रमी,धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्य वक्ता और दृढ़ प्रतिज्ञ कौन है? "सदाचार से युक्त, समस्त प्राणियों का हित साधक विद्वान ,सामर्थ्यशाली और एक मात्र प्रियदर्शन अर्थात सुंदर मानव कौन है?" "मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कांति मान और किसी की भी निंदा ना करने वाला कौन है ?तथा संग्राम में स्थित होने पर क्रोधित होने पर भी अन्याय के विरुद्ध किससे देवता भी डरते हैं?" इन 16 गुणों के प्रश्नात्मक वर्णन में मानवोचित गुणों के विषय को दृष्टिगत रखते हुए पूछा गया है कि इस समय मानव की कस...