राम मंदिर
रामो विग्रहवान धर्म:।
राम धर्म के साक्षात विग्रह हैं।
यह वचन महर्षि वाल्मीकि जी के हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भारतीय आदर्श और संस्कृति के साक्षात स्वरूप हैं। वह भारत की मर्यादा शील, सदाचार, चरित्र और नैतिकता हैं।
वेद भगवान कहते हैं- मनुर्भव अर्थात मनुष्य बनो। मानव बनो।
तब ऐसा कौन है, जो मानव की कसौटी पर खरा उतरता हो? और क्या है मानव होने की कसौटी?
कुछ ऐसा ही प्रश्न महर्षि वाल्मिकी जी ने देवर्षि नारद जी से पूछा, जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में है।
"इस संसार में गुणवान, पराक्रमी,धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्य वक्ता और दृढ़ प्रतिज्ञ कौन है?
"सदाचार से युक्त, समस्त प्राणियों का हित साधक विद्वान ,सामर्थ्यशाली और एक मात्र प्रियदर्शन अर्थात सुंदर मानव कौन है?"
"मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कांति मान और किसी की भी निंदा ना करने वाला कौन है ?तथा संग्राम में स्थित होने पर क्रोधित होने पर भी अन्याय के विरुद्ध किससे देवता भी डरते हैं?"
इन 16 गुणों के प्रश्नात्मक वर्णन में मानवोचित गुणों के विषय को दृष्टिगत रखते हुए पूछा गया है कि इस समय मानव की कसौटी पर कौन खरा है?
तब देव ऋषि नारद जी इसके उत्तर में कहते हैं-
"इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न हुए एक ऐसे पुरुष हैं जो लोगों में "राम" नाम से विख्यात हैं। वही मन को वश में रखने वाले, महा बलवान, कांति मान, धैर्यवान और जितेंद्रिय हैं।"
इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहा जाता है। वे राष्ट्र के गौरव हैं। वे राष्ट्र भक्त हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा है-जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
इसी प्रकार हिंदी के महान साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त जी अपने काव्य साकेत में स्वयं श्रीराम जी के मुख से कहलवाते हैं-
"संदेश यहां मैं नहीं स्वर्ग का लाया।
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।।"
लोकमंगल की ऐसी भावना रखने वाले भगवान श्री राम का भव्य मंदिर उनकी जन्मभूमि अयोध्या में बनाया जाना गौरव का विषय है। भव्य मंदिर निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान की प्रतिष्ठा है; चूँकि यह अवसर हजारों वर्षों बाद प्राप्त हुआ है। अतः हम सभी को इस पावन कार्य में यथासंभव योगदान देना चाहिए।
आचार्य मनोज कुमार झा
योग शिक्षक
पतंजलि योगपीठ
#8650710405
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