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गंगा पुत्र का अंत(एक सन्त की कथा)

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गंगा भारतवर्ष की प्राण दायिनी होने के कारण मां है । हम सब गंगा को मां कहते हैं । संपूर्ण राष्ट्र की लगभग 50% जनसंख्या गंगा पर निर्भर है किंतु आज यह मां संकट में है जो सबको पवित्र करती है उसे आज अपनों के द्वारा अपवित्र होना पड़ रहा है। कभी गंगा के तट पर वैदिक ऋचाएँ गूँजा करती थी किंतु अब तो उसकी वह मधुर कल कल अविरल स्वर सुनाई भी नहीं पड़ता। हां यदि आप ध्यान से सुन सकें तो गंगा की सिसकियां सुन सकते हैं । वह रो रही है, उसका जल ही उसके आंसू है । उसे बांध बनाकर बंधक बनाया जा रहा है । अपशिष्ट पदार्थ गंगा में सीधे ही प्रवाहित किए जा रहे हैं । गंगा क्रंदन कर रही है । क्या आपको गंगा का करुण क्रंदन सुनाई नहीं पड़ रहा है?  कल्पना करें कि यदि गंगा का अस्तित्व समाप्त हो जाए तब क्या होगा?  समय-समय पर गंगा के रुदन को बंद कराने के लिए बहुत प्रयास हुए हैं । उसके अवरोधों के विरोध में अनशन आंदोलन आदि हुए किंतु आश्वासनों के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला देश के विभिन्न संतो के द्वारा गंगा मुक्ति के लिए आंदोलन हुए इन्हीं संतो में से एक थे-- स्वामी निगमानंद झा।  स्वामी निगमानंद झा को निगमानंद सरस्...