गंगा पुत्र का अंत(एक सन्त की कथा)
गंगा भारतवर्ष की प्राण दायिनी होने के कारण मां है । हम सब गंगा को मां कहते हैं । संपूर्ण राष्ट्र की लगभग 50% जनसंख्या गंगा पर निर्भर है किंतु आज यह मां संकट में है जो सबको पवित्र करती है उसे आज अपनों के द्वारा अपवित्र होना पड़ रहा है। कभी गंगा के तट पर वैदिक ऋचाएँ गूँजा करती थी किंतु अब तो उसकी वह मधुर कल कल अविरल स्वर सुनाई भी नहीं पड़ता।
हां यदि आप ध्यान से सुन सकें तो गंगा की सिसकियां सुन सकते हैं । वह रो रही है, उसका जल ही उसके आंसू है । उसे बांध बनाकर बंधक बनाया जा रहा है । अपशिष्ट पदार्थ गंगा में सीधे ही प्रवाहित किए जा रहे हैं । गंगा क्रंदन कर रही है । क्या आपको गंगा का करुण क्रंदन सुनाई नहीं पड़ रहा है? कल्पना करें कि यदि गंगा का अस्तित्व समाप्त हो जाए तब क्या होगा?
समय-समय पर गंगा के रुदन को बंद कराने के लिए बहुत प्रयास हुए हैं । उसके अवरोधों के विरोध में अनशन आंदोलन आदि हुए किंतु आश्वासनों के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला देश के विभिन्न संतो के द्वारा गंगा मुक्ति के लिए आंदोलन हुए इन्हीं संतो में से एक थे-- स्वामी निगमानंद झा।
स्वामी निगमानंद झा को निगमानंद सरस्वती और गंगा पुत्र के नाम से संबोधित किया जाता था। उनका जन्म ग्राम लदारी, जनपद दरभंगा, बिहार में वर्ष 1977 में हुआ । श्री प्रकाश चंद्र झा और कल्पना झा के पर्यावरण , विज्ञान एवं अध्यात्म प्रेमी पुत्र का वास्तविक नाम स्वरूपम कुमार था,प्रेम से सभी गिरीश कहते थे। उन्होंने दरभंगा के सर्वोदय इंटर कॉलेज से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की उसके बाद वे दिल्ली में इंजीनियरिंग प्रवेश के लिए तैयारी करने लगे किंतु एक दिन उन्होंने परिवार त्यागने का संकल्प किया । पिता को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा कि-------
मातृ सदन ने वर्ष 2011 में कई अनशन किए, जिसमें से कई आंदोलनों के फलस्वरुप अवैध खनन पर न्यायालय द्वारा रोक लगाई गई किंतु कोई स्थायी समाधान नहीं हो सका।इसके लिए स्वामी निगमानंद ने जनवरी 1998 में अनशन प्रारंभ कर दिया। एक आश्वासन के बाद परिणाम फिर भी शून्य रहे तो फिर उन्होंने जून,1998 में अनशन प्रारंभ किया। 73 दिनों के अनशन के पश्चात सरकार झुकी। आश्वासन के साथ एक समिति का गठन हुआ किंतु बाद में समिति की बात स्वीकार नहीं की गई।
इससे व्यथित हो मातृ सदन ने कई और आन्दोलन किए। वे वर्ष 2009 से वर्ष 2010 तक अन्य चार बड़े अनशन पर बैठे। सरकार ने अधिसूचना जारी की।आंदोलन समाप्त कर दिया गया किंतु उन्हें क्या पता था कि अधिसूचना के बाद ही वह लागू नहीं होगा।
अवैध खनन कंपनी पर रोक लगी किंतु कुछ समय केे लिए।मातृ सदन केेे अन्य संतो ने आंदोलन को यथावत रखा उसकेेेे बाद अनशन का उत्तरदायित्व 19 फरवरी 2011 को निगमानंद सरस्वती पर आ गया। एक के बाद एक अनशनों के कारण उनका शरीर पहले ही कमजोर था किंतु दृढ़ संकल्प वाले स्वामी निगमानंद अनशन करते रहे 68 वें दिन 27 अप्रैल को उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और जिला प्रशासन ने उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया।
आज के भागीरथ को मृत्यु से संघर्ष करते हुए देखने सरकार से कोई नहीं गया और न ही किसी ने अनशन समाप्त कराने का प्रयास नहीं किया। उनके गुरु का आरोप था कि उन्हें एक नर्स ने 30 अप्रैल को विषाक्त इंजेक्शन दिया।
उसी रात से उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा फिर वे कोमा में चले गये। उन्हें जौलीग्रांट स्थित हिमालयन मेडिकल कॉलेज ले जाया गया किंतु इस गंगापुत्र को देखने ना कोई मंत्री और ना ही कोई अधिकारी वहां गया जबकि 10 जून को योग गुरु बाबा रामदेव जी जब अनशन कर रहे थे तब उनको उसी अस्पताल के उसी वार्ड में भर्ती किया गया था। उन्हें देखने मुख्यमंत्री, तमाम अधिकारी और पूरा मीडिया भी पहुंच गया। योग गुरु को देखने श्री श्री रविशंकर, मोरारी बापू, आचार्य बालकृष्ण आदि भी 12 जून को अस्पताल पहुंच गए। मध्यान्ह में ही बाबा रामदेव जी के अनशन को मीडिया कवरेज के साथ तुड़वा दिया गया और वहीं दूसरी ओर गंगापुत्र अपने जीवन की अंतिम सांसे गिन रहे थे। और अंततः 13 जून 2011 को प्रकृति संरक्षक गंगा पुत्र ने गंगा के लिए अपने प्राण समर्पित कर दिए।
16 जून को 34 वर्षीय युवा संत को मातृ सदन में ही समाधि दे दी गई और आज यह समाधि गंगा प्रेमियों का तीर्थ बन गई। इस महान संत की गाथा विदित होने के पश्चात मेरे मन में आया कि एक बार मातृ सदन के दर्शन किए जाएं। मुझे यह सौभाग्य 25 जून 2019 को प्राप्त हुआ तब मैं गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में आयोजित संस्कृत संवर्धन कार्यशाला में भाग लेने गया था। वहीं से मातृ सदन जाने की रूपरेखा बनाई। प्रातः काल ही में अपने भांजे अंकुश शर्मा के साथ दक्ष मंदिर पहुंचा। वहीं से हम गंगा स्नान के पश्चात पायलट बाबा के आश्रम का भ्रमण करते हुए मातृ सदन पहुंचे।
मातृ सदन के द्वार पर ही आश्रम के एक व्यक्ति ने पूछा-आचार्य जी कहां से आए हैं?
क्या काम है?
आश्रम में किसी से परिचित हैं क्या?
मैंने कहा- अभी तो मैं गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से आया हूं और निगमानंद जी की समाधि देखना चाहता हूँ।आश्रम में किसी से परिचित नहीं हूं। तब उस व्यक्ति ने कहा-कुछ देर रुकिये।मैं पूछ कर बताता हूं।
थोड़ी देर बाद वह व्यक्ति वापस आया और बोला- अंदर चले जाइए और बड़े महाराज जी मिलेंगे उनसे दूर से ही बात करना।
हम दोनों अंदर गए और बड़े महाराज शिवानंद जी को प्रणाम किया। उन्होंने हमें निगमानंद जी की समाधि की ओर संकेत कर भेज दिया। वहां से हम जब समाधी देखकर लौटने लगे तब महाराज जी ने बैठने के लिए निर्देशित किया और अपने शिष्य से प्रसाद देने को कहा
प्रसाद में उन्होंने हमें चावल,आलू और स्वादिष्ट आम दिए। उसके बाद महाराज जी ने परिचय पूछा- कहां से हो ?
अलीगढ़ से।
मूल रूप से?
मिथिला दरभंगा से।
मैथिली आती है?
नहीं।
इस पर गुरुजी ने कहा कि अपनी भाषा कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
इसके पश्चात गंगा आंदोलन संबंधी चर्चा भी हुई।
उन्होंने बताया कि प्रशासन के आश्वासन के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। अब देखते हैं क्या होता है? पुनः आंदोलन करेंगे।
स्वामी निगमानंद सरस्वती वेद साहित्य के शोधकर्ता और विद्वान थे। वे सामाजिक पत्रिका दिव्य संदेश के संपादक भी थे।
लेख को निगमानंद जी के प्रति गुरुदेव जी द्वारा कहे गए शब्दों से समाप्त करते हैं------------
....................वह (निगमानंद) ओजस्वी बालक, जो सत्य की खोज में बचपन से ही बेचैन था। वह मेरे संपर्क में आया और उसकी जिज्ञासा शांत हुई। .............
वह अपने आप को साधना व मातृ सदन के सिद्धांत को इतना आत्मसात कर चुका था कि हमें कभी भी निर्देश नहीं देना पड़ा।..............
13 दिसंबर 2010 को एक सम्मेलन में निगमानंद ने मेरा प्रतिनिधित्व किया। वहां निगमानंद को जो माफिया व अन्य लोग एक बालक समझते थे सब भौचक्के रह गए। ................
निगमानंद जब माइक हाथ में लेकर मातृ सदन के सिद्धांत एवं खनन की विभीषिका को सामने रखने लगा तो माफियाओं ने उनके हाथ से माइक छीन लिया।..............
वह इतना दृढ़ निश्चयी था कि आश्रम में अनशन के 67वें दिन तक हमारे साथ दैनिक यज्ञ किया करता था।
स्रोत- तत्कालीन पत्र पत्रिकाएं एवं समाचार पत्र
छायाचित्र- प्रथम दो छाया चित्र गूगल से साभार तथा शेष स्वयं मोबाइल द्वारा
मनोज कुमार झा
आचार्य
घुमक्कड़ पथिक
Bahut khoob
ReplyDeleteजी आभार
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