हिन्दी व्याकरण(प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु)
१.
भाषा - सार्थक ध्वनियों का वह समूह जिसके द्वारा हम अपने विचारों को बोलकर या लिखकर दूसरों के समक्ष रख सकते हैं और उनके विचारों को जान सकते हैं।
भाषा के दो प्रकार हैं
१.लिखित भाषा
२.मौखिक भाषा
लिपि-
भाषा के लिखित रूप के लिए प्रयोग में आने वाले ध्वनि चिन्हों के लिखने के ढंग को लिपि(स्क्रिप्ट) कहते हैं।
व्याकरण
वह शास्त्र ,जिसके माध्यम से भाषा को शुद्ध लिखने शुद्ध बोलने शुद्ध पढ़ने के नियमों का बोध होता है।
व्याकरण के तीन अंग हैं
१. वर्ण विचार
२.शब्द विचार
३.वाक्य विचार
मनोज कुमार झा
जयतु हिन्दी
क्रमशः
हिन्दी तुम्हारे प्रति मैं कृतज्ञ हूँ।
२. हिन्दी
वर्ण(अक्षर)-
जिसे खण्डित न किया जा सके, उसे वर्ण कहते हैं।
वर्ण के तीन भेद----–
१.स्वर
२.व्यंजन
३.अयोगवाह
१.स्वर (vowel)- जिन वर्णो के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता नही ली जाती , वे स्वर हैं।
हिंदी में ग्यारह स्वर हैं-
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वर के तीन भेद-
१.हृस्व स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, हृस्व स्वर कहलाते हैं।
इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
हिंदी में चार हृस्व स्वर हैं-- अ, इ, उ, ऋ
२.दीर्घ स्वर
जिनके उच्चारण में हृस्व से दोगुना समय लगे , दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
ये स्वर दो स्वरों के योग से बनते हैं अतः इन्हें संधि स्वर भी कहते हैं।
इनकी संख्या सात है।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ ,औ
३.प्लुप्त स्वर
जिनके उच्चारण में तीन गुना समय लगे, प्लुप्त स्वर कहते हैं।
हिंदी में इसका प्रयोग नहीं किया
क्रमशः
जयतु हिंदी
मनोज कुमार झा
३. हिंदी
व्यंजन(consonants)
जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है, वे व्यंजन कहलाते हैं।
इनकी संख्या तैंतीस ३३है ।
व्यंजन के तीन भेद हैं-१.स्पर्श व्यंजन
२. अन्तःस्थ
३ ऊष्म
१.स्पर्श व्यंजन-
जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास मुख के किसी न किसी भाग का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।
वर्णमाला के क से लेकर म तक के पच्चीस व्यंजन स्पर्श व्यंजन हैं।
संलग्न छायाचित्र देखें।
२. अन्तःस्थ
जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास मुख के अन्तःस्थ भाग में स्थित रहती है तथा जीभ किसी न किसी विशेष भाग का स्पर्श नहीं करती है, उसे अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं
इनकी संख्या चार ४ है।
य, र, ल, व
३.ऊष्म व्यंजन
जिन वर्णों के उच्चारण में ऊष्मा मुख से बाहर आती है, उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं।
इनकी संख्या चार४ है।
श, स, ष, ह
क्रमशः .........
जयतु हिन्दी
मनोज कुमार झा
मैं तुम्हारा सदैव ऋणी रहूँगा ।(हिन्दी)
४.हिन्दी
कुछ अन्य व्यंजन
१.संयुक्त व्यंजन
दो भिन्न व्यंजनों के परस्पर संयोग को संयुक्त व्यंजन कहते हैं।
२.द्वित्व व्यंजन
दो समान व्यंजनों के संयोग को द्वित्व व्यंजन कहते हैं।
उदाहरण के लिए संलग्न चित्र देखें।
भाषा - सार्थक ध्वनियों का वह समूह जिसके द्वारा हम अपने विचारों को बोलकर या लिखकर दूसरों के समक्ष रख सकते हैं और उनके विचारों को जान सकते हैं।
भाषा के दो प्रकार हैं
१.लिखित भाषा
२.मौखिक भाषा
लिपि-
भाषा के लिखित रूप के लिए प्रयोग में आने वाले ध्वनि चिन्हों के लिखने के ढंग को लिपि(स्क्रिप्ट) कहते हैं।
व्याकरण
वह शास्त्र ,जिसके माध्यम से भाषा को शुद्ध लिखने शुद्ध बोलने शुद्ध पढ़ने के नियमों का बोध होता है।
व्याकरण के तीन अंग हैं
१. वर्ण विचार
२.शब्द विचार
३.वाक्य विचार
मनोज कुमार झा
जयतु हिन्दी
क्रमशः
हिन्दी तुम्हारे प्रति मैं कृतज्ञ हूँ।
२. हिन्दी
वर्ण(अक्षर)-
जिसे खण्डित न किया जा सके, उसे वर्ण कहते हैं।
वर्ण के तीन भेद----–
१.स्वर
२.व्यंजन
३.अयोगवाह
१.स्वर (vowel)- जिन वर्णो के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता नही ली जाती , वे स्वर हैं।
हिंदी में ग्यारह स्वर हैं-
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वर के तीन भेद-
१.हृस्व स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, हृस्व स्वर कहलाते हैं।
इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
हिंदी में चार हृस्व स्वर हैं-- अ, इ, उ, ऋ
२.दीर्घ स्वर
जिनके उच्चारण में हृस्व से दोगुना समय लगे , दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
ये स्वर दो स्वरों के योग से बनते हैं अतः इन्हें संधि स्वर भी कहते हैं।
इनकी संख्या सात है।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ ,औ
३.प्लुप्त स्वर
जिनके उच्चारण में तीन गुना समय लगे, प्लुप्त स्वर कहते हैं।
हिंदी में इसका प्रयोग नहीं किया
क्रमशः
जयतु हिंदी
मनोज कुमार झा
३. हिंदी
व्यंजन(consonants)
जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है, वे व्यंजन कहलाते हैं।
इनकी संख्या तैंतीस ३३है ।
व्यंजन के तीन भेद हैं-१.स्पर्श व्यंजन
२. अन्तःस्थ
३ ऊष्म
१.स्पर्श व्यंजन-
जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास मुख के किसी न किसी भाग का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।
वर्णमाला के क से लेकर म तक के पच्चीस व्यंजन स्पर्श व्यंजन हैं।
संलग्न छायाचित्र देखें।
२. अन्तःस्थ
जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास मुख के अन्तःस्थ भाग में स्थित रहती है तथा जीभ किसी न किसी विशेष भाग का स्पर्श नहीं करती है, उसे अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं
इनकी संख्या चार ४ है।
य, र, ल, व
३.ऊष्म व्यंजन
जिन वर्णों के उच्चारण में ऊष्मा मुख से बाहर आती है, उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं।
इनकी संख्या चार४ है।
श, स, ष, ह
क्रमशः .........
जयतु हिन्दी
मनोज कुमार झा
मैं तुम्हारा सदैव ऋणी रहूँगा ।(हिन्दी)
४.हिन्दी
कुछ अन्य व्यंजन
१.संयुक्त व्यंजन
दो भिन्न व्यंजनों के परस्पर संयोग को संयुक्त व्यंजन कहते हैं।
२.द्वित्व व्यंजन
दो समान व्यंजनों के संयोग को द्वित्व व्यंजन कहते हैं।
उदाहरण के लिए संलग्न चित्र देखें।
५. हिन्दी
अयोगवाह
ये न तो स्वर हैं और न व्यंजन फिर भी ध्वनि वहन करते हैं इसलिए इन्हें अयोगवाह कहते हैं।
इनका उच्चारण स्वतन्त्र नहीं होता तथा नासिका की सहायता लेनी पड़ती है।
इसके तीन अंग हैं---------- –
१.अनुस्वार
जब किसी वर्ण का उच्चारण करते समय प्राणवायु नासिका द्वार से निकलती है तब वर्ण उच्चारित होता है, इसे अनुस्वार कहते हैं।
इसे बिंदु द्वारा प्रकट किया जाता है।
जैसे-----मयंक,गंगा , पंकज अंधेरा आदि
२. अनुनासिक (चंद्रबिंदु)
जब किसी वर्ण का उच्चारण करते समय प्राणवायु नासिका द्वार से कुछ हल्की सी ध्वनि करती हुई निकलती है।
जैसे- चँद्रमा, दाँत, पूँछ
३.विसर्ग
इन वर्णों के उच्चारण में कंठ से हल्की सी ह की ध्वनि निकलती है।
इसका चिन्ह :है
जैसे प्रायः, पुनः, प्रातः, अतः आदि
क्रमशः
हिन्दी में तुम्हारा ऋणी हूँ
६. हिन्दी
उच्चारण स्थान
मुख के जिस अवयव से जो वर्ण उच्चारित होता है, वही उस वर्ण का उच्चारण स्थान होता है।
अब मैं संक्षिप्त किन्तु विशेष इस सम्बंध में बताऊंगा कि इन्हें किस प्रकार याद रखें।
अस्तु,
कण्ठय (कण्ठ से)
अ, आ, ह, विसर्ग:, और क वर्ग
तालव्य(तालू से)
इ, ई, य, श और च वर्ग
मूर्धन्य (मुख की छत से)
र, ष, ऋ, और ट वर्ग
दन्त्य(दाँतों से )
ल, स, और त वर्ग
ओष्ठ्य (होंठो से)
उ, ऊ, और प वर्ग
नासिक्य (नासिका से)
अं, और प्रत्येक वर्ग का पांचवा अक्षर
कण्ठ-तालव्य
ए, ऐ
कंठोष्ठ्य
ओ और औ
दन्तोष्ठ्य
व
क्रमशः
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की कृतियाँ---
अशोक के फूल
आलोक पर्व
कल्पलता
कालिदास की लालित्य योजना
चारु चन्द्र लेख
पुनर्नवा
बाणभट्ट की आत्मकथा
साहित्य का सहचर
सूर साहित्य
हिंदी साहित्य की भूमिका
मनोज कुमार झा
७. हिन्दी
शब्द विचार
शब्द-
एक अथवा अनेक वर्णों से निर्मित, स्वतंत्र और सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं।
शब्दों का वर्गीकरण
चार प्रकार से किया गया है।
१. उत्पत्ति के आधार पर
२. रचना के आधार पर
३.अर्थ के आधार पर
४. प्रयोग के आधार पर
१.उत्पत्ति के आधार पर
पांच भेद
१.तत्सम
२.तद्भव
३देशज
४.विदेशज
५.संकर
यहाँ हम तत्सम और तद्भव के विषय में जानेंगे।
परीक्षा में तत्सम से तद्भव और तद्भव से तत्सम पूछा जाता है।
संलग्न चित्रों को ध्यान से देखें।
तत्सम का अर्थ है- तत् अर्थात उसके और सम का अर्थ समान अर्थात
संस्कृत के जो शब्द बिना किसी परिवर्तन के जैसे हैं वैसे ही हिन्दी भाषा में प्रयुक्त होते हैं।तत्सम कहलाते हैं।
तद्भव
तत् अर्थात उससे तथा भव अर्थात होने वाले अर्थात संस्कृत के जो शब्द विकृत होकर (बिगड़कर) हिन्दी भाषा में प्रयुक्त होते हैं, तद्भव कहलाते हैं।
क्रमशः
मनोज कुमार झा
८. हिन्दी
व्युत्पत्ति या रचना के आधार पर शब्द के तीन भेद होते हैं-
१.
रूढ़ शब्द-
जिन शब्दों का सार्थक खण्ड न हो सके और जो अन्य शब्दों के योग से न बने हों , रूढ़ शब्द कहलाते हैं।
जैसे- पै, र (पैर), प,शु(पशु), घ,र(घर)
२.यौगिक शब्द
जो शब्द दो या अधिक खण्डों से बने हो और प्रत्येक खण्ड का सार्थक होना ही यौगिक शब्द कहलाते हैं।
जैसे-हिमालय, विद्यार्थी
३.योगरूढ़ शब्द
जो शब्द अन्य शब्दों के योग से बने हों ,किन्तु अपने मूल अर्थ न देकर विशेष अर्थ देता हो ,योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं।
जैसे-नीरज, लम्बोदरक्रमशः
मनोज कुमार झा
९. हिन्दी
प्रयोग के आधार पर
शब्दों के दो भेद हैं-
१.विकारी शब्द--
जिन शब्दों में लिंग, वचन, कारक, काल आदि के कारण परिवर्तन होते हैं, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं।
इसके चार भेद हैं-
१. संज्ञा
२.सर्वनाम
३.विशेषण
४.क्रिया
२. अविकारी शब्द--
जिन शब्दों में लिंग ,वचन ,क्रिया आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं।
इसके भी चार भेद हैं
१.क्रिया विशेषण
२.सम्बन्धकारक
३.समुच्चय बोधक
४.विस्मयादि बोधक
अर्थ के आधार पर
इसके दो भेद हैं
१.सार्थक शब्द-
जो शब्द अर्थपूर्ण होते हैं, सार्थक शब्द कहलाते हैं।
इसके निम्न भेद हैं
१.एकार्थक
२ .अनेकार्थी
३.पर्यायवाची शब्द
४.विलोम शब्द
५अनेक शब्दों के एक शब्द(वाक्यांश बोधक)
६.श्रुतिसम भिन्नार्थक
७.समानार्थक प्रतीत होने वाले शब्द
२.निरर्थक शब्द
जो अर्थहीन होते हैं और सार्थक शब्दों के साथ जुड़कर विस्तार करते हैं ,निरर्थक शब्द कहलाते हैं।
जैसे -चाय-वाय, पानी-वानी, लिखना-विखना
क्रमशः
मनोज कुमार झा
तुलसीदास जी की कृतियाँ-
श्रीरामचरितमानस
विनय पत्रिका
कवितावली
गीतावली
श्री कृष्ण गीतावली
दोहावली
जानकी मंगल
पार्वती मंगल
वैराग्य संदीपनी
वरबै रामायण
१०. हिंदी
संज्ञा
किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, प्राणी या भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं।
संज्ञा के पांच भेद होते हैं।
१.व्यक्तिवाचक संज्ञा
जो संज्ञा शब्द किसी विशेष व्यक्ति, प्राणी, वस्तु या स्थान का बोध कराए, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे
राकेश, आगरा , रामायण, महाभारत आदि
२. जातिवाचक संज्ञा
जो संज्ञा शब्द किसी व्यक्ति, वस्तु ,स्थान आदि की सम्पूर्ण जाति का बोध कराए, जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे
नदी, पर्वत, गांव, फल, ,पुस्तक, नगर आदि
३. भाववाचक संज्ञा
जो संज्ञा शब्द गुण, दोष, दशा , अवस्था, आदि का बोध कराए, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे
नम्रता, सज्जनता, नीचता, मधुरता, बाल्यावस्था आदि
भाववाचक संज्ञा की विशेषताएं
जातिवाचक और व्यक्तिवाचक संज्ञाओं को देख सकते हैं किंतु भाववाचक को नहीं।
इनका प्रयोग केवल एकवचन के लिए होता है।
इनका केवल अनुभव कर सकते हैं।
भाववाचक संज्ञाएँ मूल शब्द नहीं है,।ये संज्ञा ,सर्वनाम, विशेषण तथा क्रियाओं में इ, त्व, ता, पा, वट, हट, आदि प्रत्यय लगाके बनती हैं।
संलग्न चित्र देखें
अन्य भेद
४.द्रव्यवाचक संज्ञा
जिस संज्ञा शब्द से किसी द्रव्य(पदार्थ) या धातु का बोध होता है, तथा इन्हें नापा तौला जा सकता है ,उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे
चाँदी, पानी, तेल, दूध , सोना आदि
५.समूहवाचक संज्ञा
जिस संज्ञा शब्द से किसी समुदाय, दल, झुंड, समूह आदि का बोध हो, समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे
सभा, सेना, कक्ष, परिवार, भीड़ ,पुलिस, पार्टी आदि
क्रमशः
मनोज कुमार झा
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की कृतियाँ
अलका
कुकुरमुत्ता
अनामिका
कुल्ली भाट
काले कारनामे
लिली
परिमल
गीतिका
जूही की कली
अणिमा
अर्चना
अपरा
राम की शक्ति पूजा
तुलसीदास
११.हिन्दी
उपसर्ग (prifix)
जो शब्दांश किसी शब्द से पहले जुड़कर उसका अर्थ परिवर्तित कर देते हैं,
उन्हें उपसर्ग कहते हैं।
उपसर्ग दो शब्दों से मिलकर बना है
उप और सर्ग
उप का अर्थ है निकट
और
सर्ग का अर्थ है सृष्टि
अर्थात
उपसर्ग का अर्थ है
निकट लगाकर नया शब्द बनाना
जैसे
हार शब्द से पहले उपसर्ग लगाने से निम्न शब्द बने
आ-हार
उप-हार
प्र-हार
वि-हार
सं-हार
आदि
उपसर्ग के भेद
१.संस्कृत के उपसर्ग(तत्सम)
२.हिन्दी के उपसर्ग(तद्भव उपसर्ग)
३.उर्दू के उपसर्ग(फ़ारसी और अरबी)
क्रमशः
मनोज कुमार झा
अज्ञेय जी की कृतियाँ
त्रिशंकु
आत्मनेपद
स्मृतिरेखा
परम्परा
कोठरी की बात
अमर वल्लरी
एक बूँद सहसा उछली
शेखर:एक जीवनी
आँगन के पार द्वार
पूर्वा
बावरा अहेरी
सुनहले शैवाल
कितनी नावों में कितनी बार
इत्यलम
१२. हिन्दी
प्रत्यय(suffix)
ऐसे शब्दांश ,जो किसी शब्द के अन्त में जुड़कर उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं,
उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
इसके दो भेद हैं
१. कृदंत प्रत्यय
जो शब्द क्रिया या धातु के अन्त में प्रयोग किये जाते हैं और कृत प्रत्यय के योग से बनने के कारण कृदंत कहलाते हैं।
कृदंत प्रत्यय
जैसे - आ , आई, आन , आप आदि
२. तद्धित प्रत्यय
जो प्रत्यय धातुओं को छोड़कर संज्ञा, सर्वनाम ,विशेषण आदि के अंत मे लगकर नए शब्द बनाते हैं ,
तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।
तद्धित प्रत्यय
आहट, ती, वाला, आदि
क्रमशः
मनोज कुमार झा
रामवृक्ष बेनीपुरी जी की कृतियाँ
गेहूँ और गुलाब
चिता के फूल
जंजीरें और दीवारें
पतितों के देश में
पैरों में पंख बाँधकर
माटी की मूरतें
लाल तारा
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