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वासन्ती नव शस्येष्टि:- होलिकोत्सव

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रंगोत्सव का पर्व हिंदुओं का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। संस्कृत में इसका नाम "होलिका" या "होलाका"  कई जगह आया है।  होली एक पर्व, उत्सव और वैदिक कर्मों का एक समूह है, जिनमें कालक्रम से परिवर्तन होते होते भिन्न-भिन्न कर्मों के कुछ चिन्ह मात्र शेष रह गए हैं। पर्व का समय:- यह फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होता है। यह प्रथम चातुर्मास्य याग है, जिसका नाम "वैश्वदेव"है। रंगोत्सव के विभिन्न नाम:- इस पर्व को संस्कृत में होलिका या होलाका कहते हैं। हम इसे  होली, रंगोत्सव, वर्णोत्सव आदि कहते हैं। वेदों में इसका नाम वासन्ती नव शस्येष्टि कहते हैं क्योंकि  यह वसन्त ऋतु में आता है  और वर्ष के अंतिम मास में आता है। वैदिक यज्ञ का पर्व:-  वेद का मुख्य कर्म यज्ञ है। उस यज्ञ के तीन भेद हैं - इष्टि, सोम और चयन। इसमें इष्टि- अग्निहोत्र  दशपौर्णमास और चातुर्मास्य आदि भेद से अनेक प्रकार की है। चातुर्मास्य उन यज्ञों का नाम है, जो चार चार महीनों के अंतर से किए जाते हैं। वैसे तो ऋतु छः मानी गई है किंतु दो ऋतुओं में समय प्रायः एक सा रहता है इसलिए मुख्य ऋतु तीन ही हैं- गर्मी, वर्षा और शीत। ...

राम मंदिर

  रामो विग्रहवान धर्म:। राम धर्म के साक्षात विग्रह हैं। यह वचन महर्षि वाल्मीकि जी के हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भारतीय आदर्श और संस्कृति के साक्षात स्वरूप हैं। वह भारत की मर्यादा शील, सदाचार, चरित्र और नैतिकता हैं। वेद भगवान कहते हैं- मनुर्भव अर्थात मनुष्य बनो। मानव बनो। तब ऐसा कौन है, जो मानव की कसौटी पर खरा उतरता हो? और क्या है मानव होने की कसौटी? कुछ ऐसा ही प्रश्न महर्षि वाल्मिकी जी ने देवर्षि नारद जी से पूछा, जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में है। " इस संसार में गुणवान, पराक्रमी,धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्य वक्ता और दृढ़ प्रतिज्ञ कौन है? "सदाचार से युक्त, समस्त प्राणियों का हित साधक विद्वान ,सामर्थ्यशाली और एक मात्र प्रियदर्शन अर्थात सुंदर मानव कौन है?" "मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कांति मान और किसी की भी निंदा ना करने वाला कौन है ?तथा संग्राम में स्थित होने पर क्रोधित होने पर भी अन्याय के विरुद्ध किससे देवता भी डरते हैं?" इन 16 गुणों के प्रश्नात्मक वर्णन में मानवोचित गुणों के विषय को दृष्टिगत रखते हुए पूछा गया है कि इस समय मानव की कस...

उसने कहा था- एक कहानी

  अरे! यह कौन आ गया सीधे। किसी से बिना पूछे केबिन में चला आया। (आश्चर्य से) सहकर्मी से धीरे से कहते हुए- सर! जरा देखो कोई अपरिचित व्यक्ति अंदर घुस आया है। ऐसा कुलदीपिका ने कहा। अब आप पूछेंगे? यह कुल कुलदीपिका कौन है? हम इस अपरिचित व्यक्ति के परिचय के साथ ही कुलदीपिका का भी परिचय देंगे। जैसे ही उसने सहकर्मी से कहा- तब सहकर्मी ने देखकर कहा कि यह भी इसी बैंक में कार्य करते हैं और बाहर से आए हैं। वास्तव में यह जो अपरिचित व्यक्ति है उसका नाम मानव है और वह लगभग 10 दिनों के बाद बाहर से एक विशेष निजी कार्य से लौटकर आये हैं। शांत स्वभाव, सबका सहयोगी और कुलदीपिका जिसे हम आगे केवल दीपिका नाम से संबोधित करेंगे; वह इस शहर में नई है तथा उसकी नौकरी इसी बैंक में लगी है। वह एक चंचल स्वभाव, हंसमुख, सौंदर्यशाली है। उसकी आकर्षक मुस्कान जो देखे देखता रह जाए, ऐसी है। धीरे धीरे मानव और दीपिका के परस्पर संवाद होने लगे पाठकगण! यह कैसे और क्यों होता है? कोई अच्छा लगता क्यों है? किसी से अधिक वार्तालाप भी समाज के लोगों में कौतूहल पैदा क्यों करता है? किसी को देखना, मुस्कुराना उससे बातें करना क्यों कौतूहल का वि...

सीता परित्याग- उचित- अनुचित या कल्पित

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प्रत्येक राक्षस पति अपनी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करता है, जबकि प्रत्येक राम अपनी पत्नी के वियोग में पागल होकर बिलखते हुए कहता है-   हे खग मृग! हे मधुकर श्रेनी! तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।। राम वह पुरुष हैं जो स्वयं को सीता के वियोग सहने में  असमर्थ पाते हैं। अनुज लक्ष्मण से कहते हैं- घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा।।   राम सीता के वियोग में पागल की तरह विलाप करते हैं और दुःखी होते हैं। तो क्या उन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने सीता का परित्याग किया? ऐसा संभव नहीं लगता।   कुछ लोगों का प्रश्न है कि भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बड़े दयालु और न्यायकारी थे, तो उन्होंने निर्दोष जानकर भी माता सीता का त्याग क्यों किया? वास्तव में सीता परित्याग कल्पित लगता है फिर भी यह घटना घटित हुई हो तो भी इसमें प्रधानतः निम्न कारणों पर विचार किया जा सकता - १. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के सम्मुख इस प्रकार की बात आई थी कि राम ने रावण के घर में रह कर आई हुई सीता को घर में रख लिया इसलिए यदि हमारी स्त्रियां भी दूसरों के यहां रहेंगी तो हम भी इस बात को सह लेंगे क्योंक...

एकदन्त- गणेश जी की अद्भुत कथा

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  प्रत्येक मनुष्य की कोई ना कोई कामना होती है जिनको क्लेश है वे क्लेश का  नाश चाहते हैं, और दूसरे ऐश्वर्य और भोग चाहते हैं। अपनी कामना पूर्ण करने के लिए लोग सभी प्रकार के  प्रयत्न करते हैं किंतु क्या कोई अपनी कामनाएं देव के सहारे के बिना पूरी करता है।कामनाओं का अंत ही नहीं है। अतः लोग भिन्न भिन्न देवी देवताओं के उपासक हैं। ऋग्वेद में कहा गया है- 'न ऋते त्वत् क्रियते किंचन'(१०/११२/९) 'हे गणपते! तुम्हारे बिना कोई भी कर्म नहीं किया जाता।' गणेश जी के अन्य नाम:-  विघ्ननिवारण के लिए भगवान गणेश जी सुप्रसिद्ध हैं।भारत में प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह हिंदू धर्म के किसी भी मत को मानने वाला क्यों ना हो किसी ना किसी रूप में भगवान गणेश का पूजा करता ही है। प्रत्येक मंदिर में भगवान गणेश जी को हम देख सकते हैं किसी भी अन्य मंगल कार्य को करते समय सर्वप्रथम इनकी पूजा होती है भगवान गणेश के अनेक नाम बतलाए गए हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण (३/४४/८५) में भगवान गणेश जी के आठ नाम आये हैं; जोकि निम्न लिखित हैं- गणेशमेकदंतम्  च  हेरम्ब  विघ्न  नायकं। लम्बोदरम् शूपकर्णम् गजवक्त्रम् गु...

सृष्टि का निर्माण और मनुष्य?

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 सृष्टि का निर्माण क्यों?   यह बहुत ही गंभीर प्रश्न है।  यह बड़ा ही रहस्य पूर्ण विषय है किन्तु इसके सम्बन्ध में ऋग्वेद के१०वें मण्डल के १२९वें सूक्त के मन्त्रों में प्रकाश डाला गया है, जिसमें ऋषि ने बताया है कि सृष्टि का निर्माण कब, कहाँ, क्यों और किससे हुआ? नासदीय सूक्त के मन्त्रों में कहा है कि---  सृष्टि के पहले ईश्वर के मन में सृष्टि की रचना का संकल्प हुआ अर्थात इच्छा पैदा हुई क्योंकि पुरानी कर्म राशि का संचय जो बीज रूप में था, सृष्टि का उपादान कारण भूत हुआ। यह बीजरूप सत पदार्थ रूप ब्रह्मरूपी असत से पैदा हुआ।।४।।  सूर्य की किरणों के समान सृष्टि बीज को धारण करने वाले पुरुष भोक्ता हुए और भोग्य वस्तुएं उत्पन्न हुई।  इन भोक्ता और भोग्य की किरणें ऊपर नीचे आड़ी तिरछी फैलीं।इनमें चारों तरफ भोग्यशक्ति निकृष्ट थी और भोक्तृशक्ति उत्कृष्ट थी।।५।। यह सृष्टि किस विधि से और किस उपादान से प्रकट हुई? यह कौन जानता है? कौन बताए? किस की दृष्टि वहां पहुंच सकती है? क्योंकि सभी इस सृष्टि के बाद ही उत्पन्न हुए हैं, इसलिए यह सृष्टि किस से उत्पन्न हुई है? यह कौन जानता है?।...

दिशा- जो आपको सही मार्ग दिखाये

 दस #दिशा दस #दिग्पाल 🙏 दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधस् ।  हिन्दू धर्मानुसार प्रत्येक दिशा का एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे 'दिग्पाल' कहा गया है अर्थात दिशाओं के पालनहार। दिशाओं की रक्षा करने वाले।   10 दिशा के 10 दिग्पाल : उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति या सूर्य देव , पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधस्  के विष्णु देव अनंत।