सीता परित्याग- उचित- अनुचित या कल्पित
प्रत्येक राक्षस पति अपनी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करता है, जबकि प्रत्येक राम अपनी पत्नी के वियोग में पागल होकर बिलखते हुए कहता है-
हे खग मृग! हे मधुकर श्रेनी!
तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।।
राम वह पुरुष हैं जो स्वयं को सीता के वियोग सहने में असमर्थ पाते हैं। अनुज लक्ष्मण से कहते हैं-
घन घमंड नभ गरजत घोरा।
प्रिया हीन डरपत मन मोरा।।
राम सीता के वियोग में पागल की तरह विलाप करते हैं और दुःखी होते हैं। तो क्या उन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने सीता का परित्याग किया? ऐसा संभव नहीं लगता।
कुछ लोगों का प्रश्न है कि भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बड़े दयालु और न्यायकारी थे, तो उन्होंने निर्दोष जानकर भी माता सीता का त्याग क्यों किया?
वास्तव में सीता परित्याग कल्पित लगता है फिर भी यह घटना घटित हुई हो तो भी इसमें प्रधानतः निम्न कारणों पर विचार किया जा सकता -
१.
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के सम्मुख इस प्रकार की बात आई थी कि राम ने रावण के घर में रह कर आई हुई सीता को घर में रख लिया इसलिए यदि हमारी स्त्रियां भी दूसरों के यहां रहेंगी तो हम भी इस बात को सह लेंगे क्योंकि राजा जो कुछ करता है तो प्रजा उसी का अनुसरण करती है।
यथा राजा तथा प्रजा
इस भावना से भगवान ने सोचा सीता जी निरपराध हैं। साधारण लोग इस बात को नहीं जानते।वे तो यही शिक्षा लेंगे कि परपुरुष के घर बिना बाधा स्त्री रह सकती है। धर्म की रक्षा के लिए सीता जी का त्याग कर देना चाहिए। सीता के त्याग में उनका दुःख हो रहा था किंतु श्रीराम ने यहां प्रजा धर्म की रक्षा के लिए व्यक्ति धर्म का बलिदान कर दिया। लोक व्यवहार के हेतु से भी सीता का त्याग उचित है।
२.
सीता जी का झूठा अपवाद करने वाले लोग भले ही थोड़ी संख्या में हो किंतु बिना त्याग के वह अपवाद मिट नहीं सकता था और उसके पश्चात की घटनाएं यदि ना हुई होती तो सीता जी का नाम आज जिस भाव से लिया जाता है शायद वैसे ना लिया जाता।
३.
अवतार का लीला कार्य समाप्त हो चुका था। देवता गण सीता जी को इस बात का संकेत पहले ही कर गए थे। अध्यात्म रामायण में लिखा है कि सीता जी ने एकांत देखकर भगवान से कहा कि हे देव! उस दिन इन्द आदि देवताओं ने मेरे पास आकर यह कहा- हे माता! तुम भगवान के चित् शक्ति हो। तुम पहले बैकुंठ पधारने की कृपा करो तो भगवान राम जी भी बैकुंठ पधार कर हम लोगों को प्राप्त होंगे। देवताओं ने जो कुछ कहा था सो मैंने निवेदन किया है मैं कोई आज्ञा नहीं करती आप जैसा उचित समझें वैसा करें। तब भगवान
श्री राम ने कहा-
देवी! मैं सब जानता हूं, तुमको एक उपाय बतलाता हूँ।हे सीते! मैं तुम्हारे लोकापवाद के बहाना रच कर साधारण मनुष्य की तरह लोकापवाद के भय से तुमको वन में त्याग दूंगा। वहां वाल्मीकि आश्रम में दो पुत्र होंगे क्योंकि इस समय तुम्हारे गर्भ है। तदनंतर तुम मेरे पास आ लोगों को विश्वास दिलाने के लिए बड़े आदर से शपथ खाकर पृथ्वी के विवर में प्रवेश कर तुरंत बैकुंठ को चली जाओगी और पीछे से मैं भी आ जाऊंगा यही निश्चय है। यह भी एक कारण है।
४. श्रवण के माता पिता का दशरथ जी को दिया गया श्राप तथा ऋषि भृगु और देवर्षि नारद जी द्वारा विष्णु जी को दिया श्राप सत्य रखने के लिए भी यह घटना हुई होगी।
इस सम्बंध में मेरा अनुसन्धान चल रहा है, अन्य बदलाव होते रहेंगे।
साभार:- आदर्श देवियां, गीताप्रेस, गोरखपुर
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