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Showing posts from July, 2018

भारतीय संस्कृति में तिलक धारण का महत्त्व

भारतीय संस्कृति में तिलक धारण की परम्परा चिरकाल से चली आ रही है। इसका महत्व इससे ही ज्ञात हो जाता है कि भगवान श्री कृष्ण भी कस्तूरी का तिलक धारण करते हैं। इसलिये प्रबुद्ध पाठक तनिक विचार करें कि स्वयं भगवान तिलक धारण करते हैं तो उनके भक्त बिना तिलक के क्यों? इसलिए सभी को तिलक धारण करना चाहिए। अमरकोश के द्वितीय कांड में तिलक के चार नाम बताये हैं। १.तमालपात्र २.तिलक ३.चित्रक ४.विशेषक  बिना तिलक के किये गए धार्मिक कार्य निष्फल हो जाते हैं।  तिलक रोली, चन्दन, गंगा की मिट्टी,यज्ञ भस्म, खड़िया मिट्टी , और सिन्दूर से लगाना चाहिए। भारत में मुख्यतः तीन सम्प्रदाय हैं----- १.वैष्णव (ऊर्ध्व पुण्ड्र) २.शैव (त्रिपुण्ड्र) ३.शाक्त (बिन्दु) शीतऋतु में उष्ण द्रव्यों से जैसे केसर ,गोरोचन,कस्तूरी आदि से लगाना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में कर्पूर युक्त तिलक लगाना चाहिए,जिससे मस्तक प्रदेश का पित्त सक्रिय रहे तथा ग्रीष्म ऋतु में कर्पूर युक्त द्रव्य का तिलक लगाना चाहिए। जिससे सिरदर्द, रक्तचाप, नेत्र की जलन आदि से बच सकें। तिलक नाभि के नीचे के अंगों को छोड़कर लगाया जाता है। इससे अंगविशे...

भगवान शिव -प्रथम योगी

शिव का अर्थ है-कल्याण। शिव ही शंकर हैं। "शं"का अर्थ भी है-कल्याण और "कर"का अर्थ है करने वाला अर्थात जो सम्पूर्ण सृष्टि का कल्याण करता है, वही शंकर है। यदि व्यक्ति सभी के मंगल की कामना करे तो वह शिवमय हो सकता है। भगवान शिव भाषाओं के जनक हैं। क्योंकि सभी भाषाएं संस्कृत से बनी हैं और संस्कृत का निर्माण"महेश्वर सूत्र"से हुआ;जो शिव जी के डमरू बजाने से निःसृत हुये हैं। उन्हीं सूत्रों पर संस्कृत व्याकरण टिका है।

भारतीय संस्कृति में व्रत -उपवास का महत्व

भारतीय संस्कृति में व्रत-उपवास का विशेष महत्व दिया गया है। इससे बुद्धि, ज्ञान ,और विचार शक्ति आदि की वृद्धि होती है। आयुर्वेद के अनुसार भी इससे अनेक रोगों का नाश होता है। शरीर की शुद्धि होती है। जो भी व्रत उपवास कर रहा है उसके मन में श्रद्धा होनी अत  आवश्यक है। इसके कई प्रकार हैं किन्तु जनमानस में व्रत और उपवास दो हैं। ****व्रत और उपवास****** व्रत और उपवास दोनों वस्तुतः एक ही हैं किन्तु भेद यह है कि व्रत में भोजन किया जा सकता है। और उपवास में एक अहोरात्र निराहार रहना पड़ता है। इनके तीन प्रमुख भेद हैं- ---- १. कायिक २.वाचिक ३.मानसिक । अन्य भेद---- १.काम्य--–जो इच्छा पूर्ति के लिये अर्थात जो कामना परक होते हैं। जैसे-वटसावित्री आदि। २.नित्य --- जो पुण्य संचय के लिए किये जाते हैं। जैसे-एकादशी आदि। ३.नैमित्तिक, नक्त, अयाचित, मितभुक आदि। ****व्रत सम्बन्धी नियम****** किसी भी व्रत का उद्यापन अपने धन के अनुसार करना चाहिये। पद्मपुराण का वचन है कि जल,फल,मूल,दूध,मेवा समायुक्त खीर,ब्राह्मण की इच्छा, औषधि और गुरु(पूज्यजनों)के वचन-इन आठ से व्रत नहीं बिगड़ते। गौतम स्मृति का ...

दैनिक नित्यकर्म (१) शय्या त्याग

सदाचार का प्रथम नियम शय्या त्याग अर्थात निद्रा से जागना। हमारे ऋषियों ने आदेश दिया है कि- "ब्राह्मे मुहूर्ते बुद्धयेत " ब्राह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।(मनु स्मृति,४/९२) सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टे पूर्व का समय "ब्राह्म मुहूर्त कहलाता  हैं। 3