कहाँ हो भगीरथ?(गंगा की पुकार)
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन स्रोतों अर्थात जल की समस्त नदियों में मैं गंगा हूं। गंगा मात्र एक नदी नहीं है, अपितु वह हमारी आस्था, श्रद्धा और विश्वास का एक दिव्य ने प्रवाह है। हमारे ऋषियों(ब्राह्मणों) ने कोई गंगा को यूं ही पवित्र नदी घोषित नहीं किया होगा। यह तो वर्षों के अनुसंधान करने के पश्चात इसे देव नदी घोषित किया।
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हरकी पैड़ी, हरिद्वार |
करब जप तप धेआन,
जनम कृतारथ एक ही सनान।
भन विद्यापति समदओं* तोहि,
अंत काल जनु विसरहु मोही।।
(*) समदओं-प्रार्थना करता हूँ।
युगों युगों से गंगा पृथ्वी पर निर्मल बहती आ रही है किंतु विशेष रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से गंगा अत्यंत प्रदूषित हो गई है। इसका कारण क्या है? इसका एकमात्र कारण है कि हमने अपने पूर्वजों के बताए हुए मार्ग का अनुसरण नहीं किया। हमारे प्राणों में गंगा जी का यशोगान तो है ही, वहीं दूसरी ओर इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए भी कुछ नियम बनाए।
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त्रिवेणी घाट,ऋषिकेश |
यथा-
शौचमाचनम चैव निर्माल्यं मलघर्षणम्।
गात्र संवाहन क्रीडां प्रतिग्रह मथो रतिम्।।
अर्थात पुण्यमयी श्री गंगा जी में मल मूत्र का त्याग, कुल्ला करना, निर्माल्य फेंकना(पूजा सामग्री ) मल संघर्षण करना या शरीर को मलना नहीं चाहिए और गंगा जी में जल क्रीड़ा भी नहीं करनी चाहिए।
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हरकी पैड़ी, हरिद्वार |
किंतु दुर्भाग्य से इस ओर ध्यान नहीं दिया गया।आज गंगा अत्यंत प्रदूषित होती जा रही है। गंगा को निर्मल करने के नाम पर करोड़ों- अरबों रुपए व्यय हुए किंतु सफलता शून्य ही रही। अनेकों कारखानों तथा शहरों से निकलने वाले अपशिष्ट को सीधे गंगा में डाला जा रहा है। कितने कठिन परिश्रम से गंगा का पृथ्वी पर पदार्पण हुआ।
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हरकी पैड़ी, हरिद्वार |
महाराज भागीरथ के से पूर्व कई पीढ़ियों ने गंगा को लाने का प्रयास किया किंतु सफलता हाथ नहीं लगी तब भागीरथ जी ने गंगा को लाने के प्रयास किये, किन्तु सफलता हाथ न लगी। तब भागीरथ जी ने गंगा को लाने के लिए तप किया। कैसा तप किया होगा? उन्होंने हिमालय के दुर्गम ऊँची चोटियों को तोड़कर हिमनदों(ग्लेशियरों)को मिलाकर उत्तरवाहिनी धारा को दक्षिण वाहिनी किया होगा। क्या हिमालय के शिखरों को देखकर भागीरथ जी के कठिन परिश्रम का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
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आरती स्थल,त्रिवेणी घाट,ऋषिकेश |
किंतु गंगा आज भी उस महान शिल्पी, महान परिश्रमी, और महान तपस्वी को खोज रही है कहां हो भागीरथ? धरती पर आने से पूर्व मैंने तुमसे पूछा था कि सबके मैल में धोऊंगी, किंतु जब मैं मैली हो जाऊंगी तो मेरा मैल (प्रदूषण)कौन धोयेगा? तब तुम्हीं ने मुझे विश्वास दिलाया था कि तटवासी आश्रमों में वास करने वाले ऋषि, मुनि, संत, महात्मा और भारतवर्ष के लोग अपने पवित्र कर्मों के द्वारा आपको पवित्र करेंगे।
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धनुष पुल, हरकी पैड़ी, हरिद्वार |
किंतु आज वे सब कहां है भागीरथ? आज मेरा अमृत जैसा जल विषैला होता जा रहा है। स्वर्ग से मुझे मानव कल्याण के लिए लाने वाले भागीरथ! क्या तुम मुझे धरा पर इसलिए लाए थे कि मैं स्थान स्थान पर बांधी जाऊं और प्रदूषण ढोती रहूं? सभी प्रकार के कूड़ा करकट सीधे मुझ में ही डाले जा रहे हैं।
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ब्रह्मकुंड, मुख्य आरती घाट, हरकी पैड़ी, हरिद्वार |
गंगा भारतवर्ष के लोगों (भागीरथों)से जैसे कह रही है कि यदि तुम मेरी पवित्रता को सुरक्षित नहीं रख सकते तो लौटा दो मुझे उसी ब्रह्म कमंडल में।
भारत के मानचित्र में गंगा यज्ञोपवीत के समान सुशोभित है। गंगा के तट पर ही मानव सभ्यताएं फली फूलीं। यहीं सर्वप्रथम कृषि कर्म का आरंभ हुआ। विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ मैदान गंगा ने ही दिया। लगभग 50 करोड़ लोगों की आजीविका का साधन है गंगा।
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राजघाट (बुलन्दशहर) |
गंगा केवल मानव के लिए ही हितकारी नहीं अपितु यह कई प्रकार की मछलियों, मगर, घड़ियाल और कई जीव जंतुओं का घर भी है। यदि गंगा नहीं रहेगी तो इनका अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।
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नरौरा बैराज, बुलन्दशहर |
अब भी समय है भारत वासियों जागो! यदि इस समय ध्यान नहीं दिया गया तो यह राष्ट्रीय नदी देव नदी न रहकर काली नदी का रूप ले लेगी। सभी गंगा प्रेमियों से आग्रह है कि अपने घर से धूप बत्ती, फूल माला, देव चित्र, धार्मिक पुस्तकें, पॉलिथीन, रसायनिक पदार्थ आदि गंगा जी में ना डालें। गंगा के किनारे मल मूत्र ना करें। गणपति विसर्जन या अन्य पर्वों पर मूर्तियों को भू विसर्जन कराएं। इसके साथ ही साथ सरकार को भी गंगा में गिरने वाले नालों को शीघ्र ही बंद कराने चाहिए।
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राम झूला, ऋषिकेश |
पुरोहितों को भी यह यजमानों को संस्कार के अवशेषों के गंगा में बहाने से रोकने के लिए प्रेरित करना चाहिए। गंगा तब ही पूर्ण शुद्ध होगी जब इसकी सहायक नदियों को भी प्रदूषण मुक्त बनाया जाए।
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त्रिवेणी घाट,ऋषिकेश |
गंगा की वर्तमान दशा को देखकर शशांक मिश्र की कुछ पंक्तियां बिल्कुल सटीक हैं-
गंगा की बात क्या करूं गंगा उदास है,
वह जूझ रही है खुद से और बदहवास है।
बांधों के जाल में, कहीं नहरों के जाल में
सिर पीट पीट रो रही शहरों के जाल में।।
गंगा जल ही है, पर जल ही नहीं गंगा के पास
गंगा की बात क्या करूं गंगा उदास है।
असहाय है मजबूर है लाचार है गंगा,
अब हैसियत से अपनी बहुत दूर है गंगा।
अब न वो रंग रूप है, ना वह मिठास है
गंगा की बात क्या करूं गंगा उदास है।
मनोज कुमार झा
आचार्य
घुमक्कड़ पथिक
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बबराला घाट |
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बबराला घाट |
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मस्तराम घाट, अनूपशहर |
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राजघाट, बुलन्दशहर |
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स्मृतियों को संचित करने का उत्तम तरीका | उत्तम चित्र व्याख्या, 💐💐
ReplyDeleteHar Har Gange. 🙏🙏
ReplyDeleteनमामि गंगे, बहुत सुंदर और स्पष्ट वाचन। सही में गंगा उदास है।।
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