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एकदन्त- गणेश जी की अद्भुत कथा

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  प्रत्येक मनुष्य की कोई ना कोई कामना होती है जिनको क्लेश है वे क्लेश का  नाश चाहते हैं, और दूसरे ऐश्वर्य और भोग चाहते हैं। अपनी कामना पूर्ण करने के लिए लोग सभी प्रकार के  प्रयत्न करते हैं किंतु क्या कोई अपनी कामनाएं देव के सहारे के बिना पूरी करता है।कामनाओं का अंत ही नहीं है। अतः लोग भिन्न भिन्न देवी देवताओं के उपासक हैं। ऋग्वेद में कहा गया है- 'न ऋते त्वत् क्रियते किंचन'(१०/११२/९) 'हे गणपते! तुम्हारे बिना कोई भी कर्म नहीं किया जाता।' गणेश जी के अन्य नाम:-  विघ्ननिवारण के लिए भगवान गणेश जी सुप्रसिद्ध हैं।भारत में प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह हिंदू धर्म के किसी भी मत को मानने वाला क्यों ना हो किसी ना किसी रूप में भगवान गणेश का पूजा करता ही है। प्रत्येक मंदिर में भगवान गणेश जी को हम देख सकते हैं किसी भी अन्य मंगल कार्य को करते समय सर्वप्रथम इनकी पूजा होती है भगवान गणेश के अनेक नाम बतलाए गए हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण (३/४४/८५) में भगवान गणेश जी के आठ नाम आये हैं; जोकि निम्न लिखित हैं- गणेशमेकदंतम्  च  हेरम्ब  विघ्न  नायकं। लम्बोदरम् शूपकर्णम् गजवक्त्रम् गु...

सृष्टि का निर्माण और मनुष्य?

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 सृष्टि का निर्माण क्यों?   यह बहुत ही गंभीर प्रश्न है।  यह बड़ा ही रहस्य पूर्ण विषय है किन्तु इसके सम्बन्ध में ऋग्वेद के१०वें मण्डल के १२९वें सूक्त के मन्त्रों में प्रकाश डाला गया है, जिसमें ऋषि ने बताया है कि सृष्टि का निर्माण कब, कहाँ, क्यों और किससे हुआ? नासदीय सूक्त के मन्त्रों में कहा है कि---  सृष्टि के पहले ईश्वर के मन में सृष्टि की रचना का संकल्प हुआ अर्थात इच्छा पैदा हुई क्योंकि पुरानी कर्म राशि का संचय जो बीज रूप में था, सृष्टि का उपादान कारण भूत हुआ। यह बीजरूप सत पदार्थ रूप ब्रह्मरूपी असत से पैदा हुआ।।४।।  सूर्य की किरणों के समान सृष्टि बीज को धारण करने वाले पुरुष भोक्ता हुए और भोग्य वस्तुएं उत्पन्न हुई।  इन भोक्ता और भोग्य की किरणें ऊपर नीचे आड़ी तिरछी फैलीं।इनमें चारों तरफ भोग्यशक्ति निकृष्ट थी और भोक्तृशक्ति उत्कृष्ट थी।।५।। यह सृष्टि किस विधि से और किस उपादान से प्रकट हुई? यह कौन जानता है? कौन बताए? किस की दृष्टि वहां पहुंच सकती है? क्योंकि सभी इस सृष्टि के बाद ही उत्पन्न हुए हैं, इसलिए यह सृष्टि किस से उत्पन्न हुई है? यह कौन जानता है?।...

दिशा- जो आपको सही मार्ग दिखाये

 दस #दिशा दस #दिग्पाल 🙏 दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधस् ।  हिन्दू धर्मानुसार प्रत्येक दिशा का एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे 'दिग्पाल' कहा गया है अर्थात दिशाओं के पालनहार। दिशाओं की रक्षा करने वाले।   10 दिशा के 10 दिग्पाल : उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति या सूर्य देव , पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधस्  के विष्णु देव अनंत।

वो कौन थी?- एक कहानी

वो कौन थी? गांव की कच्ची पगडंडियों से होते हुए मानव आम के बगीचे में पहुँच गया। अभी आम का मौसम शुरू ही हुआ था कि अचानक बहुत तेज आँधी आ गयी। उसके बाद सभी ने अनुमान लगाया कि आज बहुत से कच्चे आम , जिन्हें अमिया कहते हैं, गिरी होंगी। कच्चे आम किसे पसन्द नहीं । आप बतायें क्या आपको पसन्द हैं? ज्यों ही मानव यह प्रश्न किया त्यों ही बाग के ठीक मध्य भाग से आवाज आयी। हाँ पसन्द हैं। वह उस स्वर की खोज में गया किन्तु वहाँ कोई नहीं। तभी अचानक देखा कि कोई लड़की पीत परिधान में तेजी से दौड़ती हुयी जा रही है। वह दृश्य देखने लायक था। ऐसा लग रहा था मानो बाग में एक बहुत से कच्चे आमों के बीच एक पीत वर्ण का सुन्दर आम हो। उसकी छटा शोभनीय होती है, कल्पना करें। फिर मानव उसे देख नहीं सका। और वो चली गयी। वो कौन थी? उसके बाद मानव आम के बाग में दिखाई देने वाली उस लड़की के बारे में सोचता है। वह किसी से पूछना भी चाहता है किन्तु संकोचवश किसी से कुछ नहीं कहता। वह सोचता है लोग कहेंगे-  क्या, क्यों और कैसे? जब वह स्वयं उसके विषय में नहीं जानता तो लोगों को क्या बताएगा? अतः स्वयं ही पता लगाने का प्रयास करता है। वह दूसर...

हरिशंकरी - ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में वृक्ष

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पीपल, बरगद और पाकड़ के वृक्षों को एक ही स्थान पर रोपित करने को " हरिशंकरी " कहते हैं। इन्हें इसप्रकार रोपित किया जाता है कि तीनों वृक्षों का एक संयुक्त छत्र विकसित हो तथा तीनों वृक्षों के तने भी एक तने के रूप में दिखाई दें। तीन देवों का स्वरूप:-                   इसका नाम हरिशंकरी है किंतु यह तीन देव हरि= विष्णु, शंकर=शिव व ब्रह्मा का स्वरूप हैं। इसमें पीपल विष्णु जी का, बरगद शिव जी का और पाकड़ ब्रह्मा जी का स्वरूप माने जाते हैं। वृक्षों का संक्षिप्त विवरण:-                               १. पीपल:-                                   इसे संस्कृत में अश्वत्थ, पिप्पल, बोधिद्रुम, कुंजराशन तथा वैज्ञानिक भाषा में फाइकस रिलीजिओसा कहते हैं।  औषधीय दृष्टि से पीपल शीतल रुक्ष, व्रण को उत्तम बनाने वाला, पित्त, कफ, व्रण तथा रक्त विकार को दूर करने वाला माना जाता है।  गीता म...

गंगा पुत्र का अंत(एक सन्त की कथा)

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गंगा भारतवर्ष की प्राण दायिनी होने के कारण मां है । हम सब गंगा को मां कहते हैं । संपूर्ण राष्ट्र की लगभग 50% जनसंख्या गंगा पर निर्भर है किंतु आज यह मां संकट में है जो सबको पवित्र करती है उसे आज अपनों के द्वारा अपवित्र होना पड़ रहा है। कभी गंगा के तट पर वैदिक ऋचाएँ गूँजा करती थी किंतु अब तो उसकी वह मधुर कल कल अविरल स्वर सुनाई भी नहीं पड़ता। हां यदि आप ध्यान से सुन सकें तो गंगा की सिसकियां सुन सकते हैं । वह रो रही है, उसका जल ही उसके आंसू है । उसे बांध बनाकर बंधक बनाया जा रहा है । अपशिष्ट पदार्थ गंगा में सीधे ही प्रवाहित किए जा रहे हैं । गंगा क्रंदन कर रही है । क्या आपको गंगा का करुण क्रंदन सुनाई नहीं पड़ रहा है?  कल्पना करें कि यदि गंगा का अस्तित्व समाप्त हो जाए तब क्या होगा?  समय-समय पर गंगा के रुदन को बंद कराने के लिए बहुत प्रयास हुए हैं । उसके अवरोधों के विरोध में अनशन आंदोलन आदि हुए किंतु आश्वासनों के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला देश के विभिन्न संतो के द्वारा गंगा मुक्ति के लिए आंदोलन हुए इन्हीं संतो में से एक थे-- स्वामी निगमानंद झा।  स्वामी निगमानंद झा को निगमानंद सरस्...

समास

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समास जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक पद बनाते हैं तो उसे समास कहते हैं। समस्त पद दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने पद को समस्त पद कहते हैं, समास किये गए पदों को समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं। जैसे- रामराज्य समास विग्रह समस्त पद में प्रयुक्त शब्दों को पुनः विभक्ति सहित पृथक करने की क्रिया को समास विग्रह कहते हैं। समास के चार भेद होते हैं। १. अव्ययीभाव २. द्वंद्व ३. बहुव्रीहि ४. तत्पुरुष ये दो उपभेद तत्पुरुष समास के ही हैं।अतः सब मिलकर छः भेद हो जाते हैं। ५. द्विगु ६.कर्मधारय क्रमशः मनोज कुमार झा अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की कृतियाँ अधखिला फूल चुभते चौपदे चोखे चौपदे पारिजात प्रद्युम्न विजय प्रियप्रवास रसकलश रुक्मिणी परिणय वैदेही वनवास १४. हिन्दी समास १.अव्ययीभाव समास जिस समास में पूर्व(पहला) पद अव्यय हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। समास का पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। समस्त पद अव्यय होता है अव्यय ,वे शब्द होते हैं जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नही  बदलते। संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद में भी अव्ययीभाव समास होता है...