धर्म क्या है?
धर्म क्या है?
इस प्रश्न के उत्तर में महाभारतकार ने उल्लेख किया है कि
"धारणाद् धर्ममित्याहु:धर्मो धारयते प्रजा:।"
धारण करने से धर्म कहलाता है, धर्म ही प्रजा को धारण किये हुए है।"
वह आगे कहते हैं कि- जिससे समाज सधा रहे,वह धर्म है। धर्म होता है प्रभव के लिए, उन्नति के लिए। धर्म प्रवचन उन्नति के निमित्त हैं।"
अधर्म के विषय में कहा- जो धर्म बहुत से लोगों को कष्ट पहुंचाये, बलपूर्वक जिसे मानने को विवश किया जाए,वास्तव में वह धर्म नहीं है, वह तो कुधर्म है।
उपर्युक्त धर्म की परिभाषा स्पष्ट करती है कि वर्तमान में बहुत से सम्प्रदाय अपने को धर्म घोषित करते हैं, विद्वान पाठक स्वयं ही आकलन करें कि धर्म क्या है?
जय भारत
इस प्रश्न के उत्तर में महाभारतकार ने उल्लेख किया है कि
"धारणाद् धर्ममित्याहु:धर्मो धारयते प्रजा:।"
धारण करने से धर्म कहलाता है, धर्म ही प्रजा को धारण किये हुए है।"
वह आगे कहते हैं कि- जिससे समाज सधा रहे,वह धर्म है। धर्म होता है प्रभव के लिए, उन्नति के लिए। धर्म प्रवचन उन्नति के निमित्त हैं।"
अधर्म के विषय में कहा- जो धर्म बहुत से लोगों को कष्ट पहुंचाये, बलपूर्वक जिसे मानने को विवश किया जाए,वास्तव में वह धर्म नहीं है, वह तो कुधर्म है।
उपर्युक्त धर्म की परिभाषा स्पष्ट करती है कि वर्तमान में बहुत से सम्प्रदाय अपने को धर्म घोषित करते हैं, विद्वान पाठक स्वयं ही आकलन करें कि धर्म क्या है?
जय भारत
Comments
Post a Comment