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गंगा पुत्र का अंत(एक सन्त की कथा)

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गंगा भारतवर्ष की प्राण दायिनी होने के कारण मां है । हम सब गंगा को मां कहते हैं । संपूर्ण राष्ट्र की लगभग 50% जनसंख्या गंगा पर निर्भर है किंतु आज यह मां संकट में है जो सबको पवित्र करती है उसे आज अपनों के द्वारा अपवित्र होना पड़ रहा है। कभी गंगा के तट पर वैदिक ऋचाएँ गूँजा करती थी किंतु अब तो उसकी वह मधुर कल कल अविरल स्वर सुनाई भी नहीं पड़ता। हां यदि आप ध्यान से सुन सकें तो गंगा की सिसकियां सुन सकते हैं । वह रो रही है, उसका जल ही उसके आंसू है । उसे बांध बनाकर बंधक बनाया जा रहा है । अपशिष्ट पदार्थ गंगा में सीधे ही प्रवाहित किए जा रहे हैं । गंगा क्रंदन कर रही है । क्या आपको गंगा का करुण क्रंदन सुनाई नहीं पड़ रहा है?  कल्पना करें कि यदि गंगा का अस्तित्व समाप्त हो जाए तब क्या होगा?  समय-समय पर गंगा के रुदन को बंद कराने के लिए बहुत प्रयास हुए हैं । उसके अवरोधों के विरोध में अनशन आंदोलन आदि हुए किंतु आश्वासनों के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला देश के विभिन्न संतो के द्वारा गंगा मुक्ति के लिए आंदोलन हुए इन्हीं संतो में से एक थे-- स्वामी निगमानंद झा।  स्वामी निगमानंद झा को निगमानंद सरस्...

समास

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समास जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक पद बनाते हैं तो उसे समास कहते हैं। समस्त पद दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने पद को समस्त पद कहते हैं, समास किये गए पदों को समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं। जैसे- रामराज्य समास विग्रह समस्त पद में प्रयुक्त शब्दों को पुनः विभक्ति सहित पृथक करने की क्रिया को समास विग्रह कहते हैं। समास के चार भेद होते हैं। १. अव्ययीभाव २. द्वंद्व ३. बहुव्रीहि ४. तत्पुरुष ये दो उपभेद तत्पुरुष समास के ही हैं।अतः सब मिलकर छः भेद हो जाते हैं। ५. द्विगु ६.कर्मधारय क्रमशः मनोज कुमार झा अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की कृतियाँ अधखिला फूल चुभते चौपदे चोखे चौपदे पारिजात प्रद्युम्न विजय प्रियप्रवास रसकलश रुक्मिणी परिणय वैदेही वनवास १४. हिन्दी समास १.अव्ययीभाव समास जिस समास में पूर्व(पहला) पद अव्यय हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। समास का पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। समस्त पद अव्यय होता है अव्यय ,वे शब्द होते हैं जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नही  बदलते। संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद में भी अव्ययीभाव समास होता है...

हिन्दी व्याकरण(प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु)

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१. भाषा - सार्थक ध्वनियों का वह समूह  जिसके द्वारा हम अपने विचारों को बोलकर या  लिखकर दूसरों के समक्ष रख सकते हैं और उनके विचारों को जान सकते हैं। भाषा के दो प्रकार हैं १.लिखित भाषा २.मौखिक भाषा लिपि- भाषा के लिखित रूप के लिए प्रयोग में आने वाले ध्वनि चिन्हों के लिखने के ढंग को लिपि(स्क्रिप्ट) कहते हैं। व्याकरण वह शास्त्र ,जिसके माध्यम से भाषा को शुद्ध लिखने शुद्ध बोलने शुद्ध पढ़ने के नियमों का बोध होता है। व्याकरण के तीन अंग हैं १. वर्ण विचार २.शब्द विचार ३.वाक्य विचार मनोज कुमार झा जयतु हिन्दी क्रमशः हिन्दी तुम्हारे प्रति मैं कृतज्ञ हूँ। २. हिन्दी वर्ण(अक्षर)- जिसे खण्डित न किया जा सके, उसे वर्ण कहते हैं। वर्ण के तीन भेद----– १.स्वर २.व्यंजन ३.अयोगवाह १.स्वर (vowel)- जिन वर्णो के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता नही ली जाती  , वे स्वर हैं। हिंदी में ग्यारह स्वर हैं- अ, आ, इ, ई, उ,  ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ स्वर के तीन भेद- १.हृस्व स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, हृस्व स्वर कहलाते हैं। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।...

भारतीय संस्कृति में तिलक धारण का महत्त्व

भारतीय संस्कृति में तिलक धारण की परम्परा चिरकाल से चली आ रही है। इसका महत्व इससे ही ज्ञात हो जाता है कि भगवान श्री कृष्ण भी कस्तूरी का तिलक धारण करते हैं। इसलिये प्रबुद्ध पाठक तनिक विचार करें कि स्वयं भगवान तिलक धारण करते हैं तो उनके भक्त बिना तिलक के क्यों? इसलिए सभी को तिलक धारण करना चाहिए। अमरकोश के द्वितीय कांड में तिलक के चार नाम बताये हैं। १.तमालपात्र २.तिलक ३.चित्रक ४.विशेषक  बिना तिलक के किये गए धार्मिक कार्य निष्फल हो जाते हैं।  तिलक रोली, चन्दन, गंगा की मिट्टी,यज्ञ भस्म, खड़िया मिट्टी , और सिन्दूर से लगाना चाहिए। भारत में मुख्यतः तीन सम्प्रदाय हैं----- १.वैष्णव (ऊर्ध्व पुण्ड्र) २.शैव (त्रिपुण्ड्र) ३.शाक्त (बिन्दु) शीतऋतु में उष्ण द्रव्यों से जैसे केसर ,गोरोचन,कस्तूरी आदि से लगाना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में कर्पूर युक्त तिलक लगाना चाहिए,जिससे मस्तक प्रदेश का पित्त सक्रिय रहे तथा ग्रीष्म ऋतु में कर्पूर युक्त द्रव्य का तिलक लगाना चाहिए। जिससे सिरदर्द, रक्तचाप, नेत्र की जलन आदि से बच सकें। तिलक नाभि के नीचे के अंगों को छोड़कर लगाया जाता है। इससे अंगविशे...

भगवान शिव -प्रथम योगी

शिव का अर्थ है-कल्याण। शिव ही शंकर हैं। "शं"का अर्थ भी है-कल्याण और "कर"का अर्थ है करने वाला अर्थात जो सम्पूर्ण सृष्टि का कल्याण करता है, वही शंकर है। यदि व्यक्ति सभी के मंगल की कामना करे तो वह शिवमय हो सकता है। भगवान शिव भाषाओं के जनक हैं। क्योंकि सभी भाषाएं संस्कृत से बनी हैं और संस्कृत का निर्माण"महेश्वर सूत्र"से हुआ;जो शिव जी के डमरू बजाने से निःसृत हुये हैं। उन्हीं सूत्रों पर संस्कृत व्याकरण टिका है।

भारतीय संस्कृति में व्रत -उपवास का महत्व

भारतीय संस्कृति में व्रत-उपवास का विशेष महत्व दिया गया है। इससे बुद्धि, ज्ञान ,और विचार शक्ति आदि की वृद्धि होती है। आयुर्वेद के अनुसार भी इससे अनेक रोगों का नाश होता है। शरीर की शुद्धि होती है। जो भी व्रत उपवास कर रहा है उसके मन में श्रद्धा होनी अत  आवश्यक है। इसके कई प्रकार हैं किन्तु जनमानस में व्रत और उपवास दो हैं। ****व्रत और उपवास****** व्रत और उपवास दोनों वस्तुतः एक ही हैं किन्तु भेद यह है कि व्रत में भोजन किया जा सकता है। और उपवास में एक अहोरात्र निराहार रहना पड़ता है। इनके तीन प्रमुख भेद हैं- ---- १. कायिक २.वाचिक ३.मानसिक । अन्य भेद---- १.काम्य--–जो इच्छा पूर्ति के लिये अर्थात जो कामना परक होते हैं। जैसे-वटसावित्री आदि। २.नित्य --- जो पुण्य संचय के लिए किये जाते हैं। जैसे-एकादशी आदि। ३.नैमित्तिक, नक्त, अयाचित, मितभुक आदि। ****व्रत सम्बन्धी नियम****** किसी भी व्रत का उद्यापन अपने धन के अनुसार करना चाहिये। पद्मपुराण का वचन है कि जल,फल,मूल,दूध,मेवा समायुक्त खीर,ब्राह्मण की इच्छा, औषधि और गुरु(पूज्यजनों)के वचन-इन आठ से व्रत नहीं बिगड़ते। गौतम स्मृति का ...

दैनिक नित्यकर्म (१) शय्या त्याग

सदाचार का प्रथम नियम शय्या त्याग अर्थात निद्रा से जागना। हमारे ऋषियों ने आदेश दिया है कि- "ब्राह्मे मुहूर्ते बुद्धयेत " ब्राह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।(मनु स्मृति,४/९२) सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टे पूर्व का समय "ब्राह्म मुहूर्त कहलाता  हैं। 3